Saturday, October 22, 2005

Reconnect with Mother Tongue

मेरा मात्रभाषा प्रेम
काफी समय से मैं हिंदी के चिट्ठे पढ रहा हूं ऐवम् अपनी मात्रभाषा को चिट्ठों की दुनिया में सजीव देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता होती है । कभी‍‍‍‍‍‌‍कभी ऐसा महसूस होता है जैसे मानो की इंगलिश ने मुझे हर दिशा से कसके जकड़ रखा है । कहा जाता है कि समय के साथ मस्तिष्क का विकास होता है, सोचने‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‌-समझने की शक्ति बढती है, विचार बढते हैं, लेकिन यहाँ तो कमबख्त, विचारों की भाषा ही बदल गयी । मैंने सोचा की इससे पहले की स्थिति काबू से बाहर हो जाये, जरा स्वयं को हरकत मे लाया जाये और अपनी मात्रभाषा से फिर से सम्बन्ध जोड़ा जाये । बस फिर क्या था, शुरू हुई एक जद्दोजहद, हिंदी की लिपि और अंतर्जाल पर उसकी उपलब्धि पर एक छोटा सा अनुसंधान, अन्य चिट्ठाकारों से सलाह मशविरा और अंतः अपनी एक कोशिश, जो आपके सामने है । मिर्ची सेठ ने बताया, तो पता चला की गूगल का ये ब्लॉगर हिंदी को सपोर्ट करता है ऐवम् प्रयोग करने में भी आसान है । लेकिन समस्या यह हुई की एक ही चिट्ठे में दो भाषाओं का समागम हो नहीं सकता और मेरे कंधो पर पहले से ही दो चिट्ठों का भार है और कंधे भी मेरे दो ही हैं, भई आखिर हम भी इसी पृथ्वी के हैं, मंगल से थोड़े ही टपके हैं । इस समस्या का समाधान भी थोड़ा सोच विचार के खोज ही लिया, कर दिया पूरब और पश्चिम का मिलाप और प्रस्तुत कर दी आपके समक्ष अपनी पहली प्रविष्टि।
हिंदी में चिट्ठे बनाने के संदर्भ में और जानकारी के लिये पढ़ें अक्षरग्राम

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This is an effort to reconnect myself with my mother tongue. I have been reading the hindi blogs for quite a while and felt good that people are working to make my language internet-compatible. I have felt that slowly slowly english, aptly tagged as father-tongue of India, has covered my thought process. In spring this year, I met a student working on a linguistics project and needed help with the script and pronunciation of Hindi. To my surprise, I had to do some effort to write grammatically accurate hindi. This is a bad sign. Then I started reading hindi websites, news and eventually blogs. And today, I started posting in hindi......I am happy.
For offline hindi typing, I am using Takhti, a very convenient and easy-to-use application. For more help in hindi blogging, check Akshargram.

6 comments:

Anonymous said...

नारायण! नारायण!
वत्स हम तुम्हारा हिन्दी प्रेम देखकर प्रसन्न है और चाहते है कि तुम अपना अलग से हिन्दी का चिट्ठा बनाओ। क्योंकि मातृभाषा का सम्मान सभी ब्लागरों का कर्तव्य है। उम्मीद है तुम जल्द ही अपना चिट्ठा हिन्दी मे बनाओगे, तभी हम तुम्हारा चिट्ठा अपने नारद फ़ीड मे शामिल कर सकेंगे।
नारायण! नारायण!

Nidhi Rastogi said...

wow...this's one's cool:D

Anonymous said...

वाह वाह ! सही है बंधु , लगे रहो ऐसे ही और हमारी भाषा का सम्मान करो ।
हमें तुम पर गर्व है ।

‍...."अत्याचारी"

Anon said...

KOOOL

Twain said...

Hey, is the English part a translation of the Hindi part?

Anonymous said...

कुछ और भी तो लिखिए जनाब..या प्रेम खतम हो गया इतनी जल्दी ?